जांजगीर नगर में स्थित विष्णु मंदिर इस जिले के सुनहरे अतीत को दर्शाता है। यह विष्णु मंदिर वैष्णव समुदाय का एक प्राचीन कलात्मक नमूना है। इसका निर्माण 12 वी शताब्दी में कल्चुरी शासको द्वारा कराया गया था।
यह मंदिर अर्ध निर्मित है। मंदिर विशाल चबूतरे पर स्थित है। यह चबूतरा 33.3 मी. लंबा, 22.3 मी. चौड़ा और 2.75मी. ऊँचा है। इसके पूर्वी भाग में विभिन्न स्फुट प्रतिमाओ के साथ राम कथा के दृश्य फलक उकेरे गए है। एक फलक पर धनुर्धारी राम, सीता, लक्षमण, रावण एवं मृग उकेरे गए है। दूसरे फलक पर सीताहरण दिखाया गया है। तीसरे फलक पर राम द्वारा एक बाण से सात ताल वृक्षो का भेदन दिखाया गया है। पश्चिमी भाग में कृष्ण कथा का उल्लेख है।
मंदिर में वराह अवतार, गरुड़ासना लक्ष्मी, मत्स्यावतार, नरसिंह अवतार, अर्धनारीश्वर की मुर्तिया है।
मंदिर का शीर्ष भाग जहाँ रखा हुआ है वहां पर माता का मंदिर भी है जिसे "देवी दाई" कहते है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर चंदवा बैगा की स्मृति में एक मंदिर का निर्माण किया गया है।
यह मंदिर अर्ध निर्मित है। मंदिर विशाल चबूतरे पर स्थित है। यह चबूतरा 33.3 मी. लंबा, 22.3 मी. चौड़ा और 2.75मी. ऊँचा है। इसके पूर्वी भाग में विभिन्न स्फुट प्रतिमाओ के साथ राम कथा के दृश्य फलक उकेरे गए है। एक फलक पर धनुर्धारी राम, सीता, लक्षमण, रावण एवं मृग उकेरे गए है। दूसरे फलक पर सीताहरण दिखाया गया है। तीसरे फलक पर राम द्वारा एक बाण से सात ताल वृक्षो का भेदन दिखाया गया है। पश्चिमी भाग में कृष्ण कथा का उल्लेख है।
मंदिर में वराह अवतार, गरुड़ासना लक्ष्मी, मत्स्यावतार, नरसिंह अवतार, अर्धनारीश्वर की मुर्तिया है।
नकटा मंदिर भी कहते है
यह मंदिर पूर्ण नहीं है। इस मंदिर का शीर्ष भाग मुख्य मंदिर से करीब 50मीटर की दूरी पर रखा हुआ है। चूंकि यह मंदिर अधूरा है इस वजह से स्थानीय लोग इसे नकटा मंदिर भी कहते है।मंदिर का शीर्ष भाग जहाँ रखा हुआ है वहां पर माता का मंदिर भी है जिसे "देवी दाई" कहते है। इस मंदिर के प्रवेश द्वार पर चंदवा बैगा की स्मृति में एक मंदिर का निर्माण किया गया है।
किव्यदन्ति
एक बार भीम और विश्वकर्मा में एक रात में मंदिर बनाने की प्रतियोगिता हुई। तब भीम ने इस मंदिर का निर्माण कार्य आरम्भ किया। मंदिर निर्माण के दौरान जब भीम की छेनी-हथौड़ी नीचे गिर जाती तब उसका हाथी उसे वापस लाकर देता था। लेकिन एक बार भीम की छेनी पास के तालाब में चली गयी, जिसे हाथी वापस नहीं ला सका और सवेरा हो गया।भीम को प्रतियोगिता हारने का बहुत दुख हुआ और गुस्से में आकर उसने हाथी के दो टुकड़े कर दिया। इस प्रकार मंदिर अधूरा रह गया। आज भी मंदिर परिसर में भीम और हाथी की खंडित प्रतिमा है।