कोसल ( वर्तमान - छत्तीसगढ़ ) - पाण्डु वंश की स्थापना उदयन ने की थी। इस वंश का शासन 6 ई. से 7 वी ई. तक रहा। इनकी राजधानी महानदी के तट पर स्थित शहर श्रीपुर थी, जो वर्तमान में सिरपुर ( रायपुर से 78 किमी दूर है और महासमुंद शहर से 35 किलोमीटर दूर स्थित है। ) के नाम से जानी जाती है।
पाण्डु वंश :
मध्य भारत में दो पाण्डु वंशो ने शासन किया। मैकल ( वर्तमान - अमरकण्टक ) के पाण्डु वंश और कोसल। उदयन ( वत्सबल ), जो कोसल के पाण्डु वंश ( प्रथम ज्ञात शासक ) के संस्थापक माने जाते है, मैकल के आखरी पाण्डु वंशी शासक भरतबल ( इंद्र के नाम से भी जाने जाते है ) के पुत्र थे। कोसल ( छत्तीसगढ़ ) में पाण्डु वंश का वास्तविक सस्थापक इंद्रबल को माना जाता है।
पाण्डु वंश :
मध्य भारत में दो पाण्डु वंशो ने शासन किया। मैकल ( वर्तमान - अमरकण्टक ) के पाण्डु वंश और कोसल। उदयन ( वत्सबल ), जो कोसल के पाण्डु वंश ( प्रथम ज्ञात शासक ) के संस्थापक माने जाते है, मैकल के आखरी पाण्डु वंशी शासक भरतबल ( इंद्र के नाम से भी जाने जाते है ) के पुत्र थे। कोसल ( छत्तीसगढ़ ) में पाण्डु वंश का वास्तविक सस्थापक इंद्रबल को माना जाता है।
उल्लेख कालिंजर अभिलेख (उ.प्र.) से प्राप्त होता है। इसके साथ ही भवदेव रणकेसरी के भंदक शिलालेख से प्राप्त होती है।
प्रमुख पाण्डु शासक
उदयन - संस्थापक, इनके शासन काल का उल्लेख नहीं है।इंद्रबल - इंद्रबल के बारे में जानकारी उनके बेटे और उत्तराधिकारी इसनदेव का एक शिलालेख से मिलती है। इंद्रबल शरभपुरीय शासक सुदेवराज का सामन्त था। सुदेवराज मृत्यु के बाद प्रवरराज प्रथम शासन काल में पाण्डु वंशी इंद्रबल ने अवसर पाकर उत्तर-पूर्वी भाग में अधिकार कर शरभपुरीय शासन को समाप्त कर पाण्डु वंश की स्थापना की और श्रीपुर को राजधानी बनाया । इन्हे वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
तीवरदेव - इन्होने सकल कोशलाधिपति की उपाधि धारण की थी। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में कलचुरि शासक पृथ्वीदेव प्रथमने भी 'सकल कोशलाधिपति' की उपाधि धारण की थी।
रानी वास्टा - ये कन्नौज के राजा यशोवर्मन की पुत्री थी। इनका पाण्डु वंश के हर्षगुप्त ( पिता - चन्द्रगुप्त ) से हुआ था। हर्षगुप्त की मृत्यु के पश्चात् रानी वास्टा ने उनके याद में श्रीपुर लक्ष्मणेश्वर मंदिर ( लक्षमण मंदिर ) का निर्माण करवाया था जो विष्णु को समर्पित है।
महाशिवगुप्त (मुख्य लेख) - हर्षगुप्त के पुत्र महाशिवगुप्त पाण्डु वंश महानतम शासक थे। ये शैव धर्म के अनुयायी थे। इनके शासन काल में चीनी यात्री युवानच्वांग एवं व्हेनसांग ( ६३९ ई. - यात्रा वृत्तान्त सी.यु.की.) ने छत्तीसगढ़ ( दक्षिण कोसल ) की यात्रा की थी। युवानच्वांग ने छत्तीसगढ़ को कियसिलो नाम दिया था।
माना जाता है कि, छत्तीसगढ़ में मंदिरों का निर्माण सर्वप्रथम इसी वंश से हुई। कालांतर में पाण्डु वंश एक शाखा सोमवंश के रूप में कांकेर में स्थापित हुई।